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Tuesday, October 27, 2020

Hindi poem - Neeli pattiyan / नीली पत्तियाँ

 


= नीली पत्तीयां =

..............................

आसमान से रंग चुराकर 

नीली हो गई हरी पत्तियाँ

मिलने लगे हैं अब हाट पर 

नीला पालक नीली सब्जियां 

आसमान से रंग चुराकर 

नीली हो गई हरी पत्तियाँ 


कुछ तो लाल पीले भी थे 

गहरा कत्थई बागों में खिले भी थे 

आसमां संग घुल गई है 

खेतों की ये बस्तियां 

आसमान से रंग चुराकर 

नीली हो गई हरी पत्तियाँ 


जंगल झाड़ अब नहीं दिखते 

अंतरिक्ष की ऊंचाई से 

तिनका तिनका नीला पड़ गया 

अद्भुत सी सिंचाई से 


सूर्य की नीली रोशनी पड़ी है 

नहीं जलती अब लाल बत्तीयां 

आसमान से रंग चुराकर 

नीली हो गई हरी पत्तियाँ  ..!!


~...~...~...•••••••...~...~...~


@ Subodh Rajak //-


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Tuesday, October 6, 2020

आधी रात ( Midnight )

 


आधी रात 

..............................

इक गहरी खामोशी है 

सन्नाटो में डूबा है वक्त 

बेबस है सारे जीव जन्तु 

रोशनी की उम्मीद है, 

कुछ खुली होंगी आंखें 

मेरी तरह 

पल पल वक्त काटता होगा कोई 

इस इंतजार में होगा कि 

कब यह अंधेरी बादल हटे 

और गोधूलि चमक उठे ..!!


वहीं कुछ सपनों के मुसाफिर 

खोया होगा किसी सपने में 

लुसिड की दुनिया में 

लड़ रहा होगा किसी राक्षस से 

व्यस्त होगा खुद को 

या अपनों को बचाने में ..!!

...~...~...~...~...~...

अंधेरा हट जाएगा थोड़ी देर में 

बैठेगी रोशनी 

अपने आसन में 

चहल कूद फिर मच उठेगा 

धरती के आँगन में ..!!





                          © Subodh Rajak 

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Monday, October 5, 2020

Mushroom / मशरूम

 


मशरूम 

........................

मशरूम तेरी टोली 

है कहां बता ?

कब मिलेगा तू 

मिलने का समय बता !

सुना है बारिश 

होती है जिस रात को 

खिल जाते हो झाड़ियों में 

चुप चाप आधी रात को 

न होता कोई डाली तेरी 

न होता लता पता 

मशरूम तेरी टोली 

है कहां बता ?

कब मिलेगा तू 

मिलने का समय बता !


तू हरा होता नहीं 

पौधे वाली गुण 

तुझमें तो दिखता नहीं 

फिर भी तुझमें स्वाद भरा 

लोग तुम्हें 

बड़े चाव से खाता 

मशरूम तेरी टोली 

है कहां बता? 

कब मिलेगा तू 

मिलने का समय बता !!




                        © Subodh Rajak 

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Friday, September 25, 2020

Hindi poem - Dheemi awajen / धीमी आवाजें

 

Dhimi aawajen


धीमी आवाजें

...........................

वो सूनी अनसुनी 

दबी धीमी सी आवाजें

चलती चहल कूद में 

शोर करती भीड़ में 

वो मौन सरगोशी ,

कभी सुनाई पड़ती है 

अकेलेपन में 

विरानों में, शीत सुबह में 

पढ़ी जाती हो कहीं कोई 

नई नई नज़्में 

वो सुनी अनसुनी 

दबी धीमी सी आवाजें ..!!


किसी की आ:ह निकली होगी 

जोरो से चीखा होगा कोई 

बार बार कानों में गुंजती 

जैसे पर्वत पर 

टकराकर गुज़र आती है 

हमारी आवाजें 

धीरे धीरे कम होती 

सुनाई पड़ती है 

वो सुनी अनसुनी 

दबी धीमी सी आवाजें  ..!!






                              - सुबोध रजक  

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Sunday, September 13, 2020

Hindi poem - Khamoshi / ख़ामोशी

 


ख़ामोशी 
.................................

आज कल 
खामोश रहता हूँ 
उन महफिल में जहां 
बड़ा शोर होता है 
क्योंकि 
यहां कोई सुनने वाला नहीं 
बस आवाजें हैं 
अंदर
चीखती, चिल्लाती 
दर्द से तड़पती 
आत्माएं हैं 
बाहर 
तो बस मुस्कुराते 
नकली चेहरे हैं 

खामोश रहता हूँ 
उन दोस्तों के बीच 
जो आजकल 
कुछ बोलते नहीं 
कई राज 
छिपे रह जाते हैं 
जो कभी खुलते नहीं 

खामोश रहता हूँ 
उस बाजार में 
जहां कई तरह के सामान 
खरीदे और बेचे जाते हैं 
रिश्तों के तराजू में 
मतलब और फायदे 
तौले जाते हैं 

खामोश रहता हूँ 
उस घर में 
जहां आजकल 
कोई कुछ बोलता नहीं 
बस कुर्सी में बैठा रहता हूँ 
खामोशी को लिये 
और खामोशी को 
करीब से महसूस करता हूँ 
आज कल 
खामोश रहता हूँ 




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Sunday, September 6, 2020

Hindi poem - Nasha / नशा ( drugs )

 

Hindi poem nasha / drugs

Drugs / नशा 

....................................


कुछ लोग नशा लेते हैं ,

कुछ लोग मजा लेते हैं ..!


इन नशीली चीजों से 

किसका भला हुआ है 

राख भरी है अंदर 

हर कोई जला हुआ है 

अपने संग वो अपना 

घर भी जला लेते हैं 

कुछ लोग नशा लेते हैं 

कुछ लोग मजा लेते हैं 


मतलब से 

मतलब रखते हैं 

मतलब नहीं तो 

कोई मतलब नहीं रखता ,

क्या हो जाता 

अगर कोई 

ये ज़हर नहीं रखता ..!!


दुनिया से अलग होकर सभी 

खुद को भूला लेते हैं ,

कुछ लोग नशा लेते हैं 

कुछ लोग मजा लेते हैं  ..!!





                           © Subodh Rajak 

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Saturday, September 5, 2020

Hindi poem - Shikshak / शिक्षक ( teacher )

 

Hindi poem Shikshak

शिक्षक 

...........................


ईश्वर बता 

शिक्षक का स्थान कहां 

बिन गुरू जग में 

मेरी पहचान कहां ?


जीवन की 

इस भूल भूलईया में 

खो जाता हर कोई ,

मिलता अगर न

मार्गदर्शक कोई ..!!


न मिलता हमे 

जीवन सार्थक सारथी 

करता फिर अभिमान कहां 

ईश्वर बता 

शिक्षक का स्थान कहां 

बिन गुरू जग में 

मेरी पहचान कहां ?





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Thursday, September 3, 2020

Hindi poem - Dincharya / दिनचर्या

 

Hindi poem Kuch Karo

दिनचर्या 

.................................


जब सुबह उठते ही हो 

तो थोड़ा खिड़की खोलो 

परदा हटाओ 

थोड़ा धूप लो 

विटामिन डी मिलेगा !

ब्रश करो मुंह धोवो 

नाश्ते में जरूर 

कुछ अच्छा मिलेगा !!

किन खयालों में रहते हो 

इतना खयालों में जीना 

अच्छी बात नहीं 

यूं पड़े पड़े समय बिताना 

अच्छी बात नहीं 

उठो दौड़ो तब तक ना रूको 

जब तक कुछ मिल न जाए 

पैर मारते रहो 

जब तक कुछ हिल न जाए 

बिना कुछ किए करता 

कोई मुलाकात नहीं 

वैसे भी हाथ पे हाथ धर के बैठ जाना 

अच्छी बात नहीं !!

जब इस दुनिया में आए हो 

तो थोड़ा परिश्रम करो 

पसीना बहावो फल मिलेगा 

आज नहीं तो कल मिलेगा 

मुंह फेर कर जाने वाले 

फिर मुस्कुराते हुए मिलेगा 

इस दुनिया के घर में 

हम सब मेहमान हैं

यहां सब को कुछ दिन रूकना है 

फिर क्यों आपस में रूठना है 

खुशीयां बांटो 

खुशीयां मिलेगा 

सब उपर वाले की देन है 

कौन भला 

क्या ठुकराएगा  !

ये दुनिया आईना है बाबू 

मुस्कुरा कर देखो 

तो जग मुस्कुराएगा  !!





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Tuesday, September 1, 2020

Hindi poem - Andhere me hun / अंधेरे में हूँ

 

Hindi poem - Andhere me hun

अंधेरे में हूँ 

..............................


कैसे देख पाओगे मुझे 

मैं अंधेरे में हूँ 

जूगनुओं की बस्ती में 

किसी पगडंडी में 

रात के गलियारे में हूँ !

इक सफर में 

मैं अकेला हूँ 

घनी रात में मंजिल 

कुछ साफ नहीं दिखता

किसी गहरी खाई के 

किनारे में हूँ 

मैं अंधेरे में हूँ !

उजाले की तलाश में 

भटकता ठोकर खाता 

उम्मीद की ज्योत जलाए 

न रूकता न थकता 

ठंड से कपकपाता 

घने कोहरे में हूँ 

मैं अंधेरे में हूँ ..!!





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Monday, August 31, 2020

Hindi poem - Gujarti Subah / गुज़रती सुबह

 

Hindi poem

गुज़रती सुबह 
.................................

आज फिर दिन गुज़रने लगा है ,
दर्श को तेरे मन तड़पने लगा है ..!

दिन ऐसे गुज़र जाता है 
जैसे हवा आता जाता है 
ठंड हवाओं की नमी से 
आंखों में पानी ठहरने लगा है 
दर्श को तेरे मन तड़पने लगा है 

हाल कुछ अपना अब खोने लगा है 
मेरी बैचेनी को देख 
मौसम भी बैचेन होने लगा है 
दर्श को तेरे मन तड़पने लगा है 

आज फिर दिन गुज़रने लगा है ,
दर्श को तेरे मन तड़पने लगा है ..!!

बात मुश्किल से होंटो पे आई है 
तेरे आने से सुबह की धूप आई है 
तेरी परछाई के संग मन चलने लगा है 
दर्श को तेरे मन तड़पने लगा है 

आज फिर दिन गुज़रने लगा है ,
दर्श को तेरे मन तड़पने लगा है  ..!!!





                           © Subodh Rajak 
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Friday, August 28, 2020

Hindi poem - Jivan parishram / जीवन परिश्रम

 

Hindi poem

जीवन परिश्रम 

.................................


जीवन परिश्रम 

कम न हो जाए 

दिन निकल गया 

कहीं शाम न हो जाए 

शुरू करो फिर कोशिश 

ज्यादा आराम न हो जाए 

जीवन परिश्रम 

कम न हो जाए ..!


ये श्रृंगार रस की कविताएं 

हल नहीं करती 

जीवन की बाधाएं 

बस कागज के दो टुकड़ों में 

गम बट न जाए 

जुनून मन का कहीं 

कम न हो जाए ..!!


लक्ष्य पाने का 

उम्मीद कहीं 

कम न हो जाए 

जीवन परिश्रम 

कम न हो जाए  ..!!!






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Monday, August 24, 2020

Thandi Thandi / ठंडी ठंडी

 

Thandi


ठंडी ठंडी 
........................

ठंडी ठंडी चली है ये हवाएं 
याद मुझे उसकी दिलाए 

पीछे पड़ गया ये 
मौसम ये सुहाना 
हो गया है पागल ये दिवाना 
रंग चांदी सुनहली फिजाएं 
याद मझे उसकी दिलाए 

ठंडी ठंडी चली है ये हवाएं 
याद मुझे उसकी दिलाए 


आया है मौसम वही 
जब मिले थे हम 
जालिम ने कर दिया 
मेरी आंखें नम 
इनकी नादानी को 
कौन इन्हें बतलाए 
याद मुझे उसकी दिलाए 

ठंडी ठंडी चली है ये हवाएं 
याद मुझे उसकी दिलाए 


कई रंग उभर आई है 
नीले आसमां पर 
मेरी बेरंग इस जहां में 
सौ रंग ये मिलाए 
याद मुझे उसकी दिलाए 

ठंडी ठंडी चली है ये हवाएं
याद मुझे उसकी दिलाए ..!!





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Monday, August 17, 2020

Hindi poem - Kuch aihsans / कुछ ऐहसास

Hindi poem

|| कुछ ऐहसास ||
.......................................

कुछ ऐहसास 
शब्दों से स्पष्ट नहीं होता 
जैसे भीगे हुए चेहरे में 
आंसू की पहचान नहीं होता 
सब कुछ छिपा लेना 
इतना आसान नहीं होता ,
छिप जाते हैं 
कुछ बोल लबों के 
हर बार मुस्कुराना 
इतना आसान नहीं होता !!

उम्मीद को हमने 
इस कदर जकड़ा है 
कि डूबती सांसों ने 
तिनका तिनका पकड़ा है 
पर कभी न कभी 
उम्मीद की पकड़ 
छुट जाता है ,
कांच हो या सपने 
मर्यादा की उंचाई से गिर कर 
टूट जाता है ..!!

जैसे ढेर रेत का 
मुट्ठी में नहीं समाता ,
कुछ ऐहसास 
शब्दों से स्पष्ट नहीं होता  ..!!


                                © Subodh Rajak 

 



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Sunday, August 9, 2020

Hindi poem - Kabhi Kabhi Barish / कभी कभी बारिश

 

कभी कभी बारिश 


आजकल कभी कभी 

बारिश हो जाती है 

ऐसे मौसम में भीगने की 

ख्वाईश हो जाती है 


एक संगीत छिड़ जाती है 

जैसे सितार पर 

बूंदो की मधुर गीत को 

सुनने की 

ख़्वाहिश हो जाती है 

आजकल कभी कभी 

बारिश हो जाती है 


तलब है बुंदो को 

मेरे आंगन में गिरने की 


आ कर यहाँ 

एक सफर खत्म हो जाती है 

आज कल कभी कभी 

बारिश हो जाती है 



Subodh Rajak 

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Saturday, August 1, 2020

Hindi poem - Lahu ur nabj / लहू उर नब्ज


Subodh hindi compositions


लहू उर नब्ज की 

शीशा टूट कर 
चुभा था अंदर 
वो आखरी 
टुकड़ा भी निकल गया ,
जख्म कुछ भर गए 
कुछ नासूर हो गए 
लहू उर नब्ज की 
आंखों से निकल गया  ..!!

लम्बे सफर में निकला हूँ 
पैरों में छाले पड़े हैं 
झुलसती धूप में 
चेहरे काले पड़े हैं ,
उम्मीद छाँव की 
हम कहां रखें 
पेड़ों की पत्तियाँ 
गिरे पड़े हैं  ..!!

जब खंजर 
दिल से निकला था 
फिर क्यों 
हाथों से फिसल गया 
लहू उर नब्ज की 
आंखों से निकल गया ...!!!





Subodh Rajak 
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Sunday, July 26, 2020

Hindi poem - Kitabon ke panne / किताबों के पन्नें


Hindi poem


किताबों के पन्नें 

एक किताब की 
कई सारे पन्नों के बीच 
फस कर दबा हूँ 

बाहर के धूल धूप गरमी जाड़ा 
से हांलाकि सुरक्षित हूँ 
स्वर की चादर ओढ़े 
रद्दी में पड़ा एक संगीत हूँ 

इस आस में हूँ कि 
कोई तो किताब उठाए 
अपनी उंगलियों से दबाकर 
पन्नों को हवा में दौड़ाए 

आंखों में एक 
बूंद की तरह अटका हूँ 
एक किताब की 
कई सारे पन्नों के बीच 
फस कर दबा हूँ  ..!!






Subodh Rajak 
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Hindi poem - Aaina / आईना ( Mirror )



आईना 

बना कर दिल जमाने ने 
इस कदर मुझे तोड़ा है ,
कि टुकड़ा टुकड़ा हिस्सा 
जमीं पे गिरा है  ..!!

कितनों ने अपना चेहरा देखा 
किसी ने आंसू देखे 
किसी ने मुस्कान देखा 
किसी ने घाव देखे 
किसी ने जख्म गहरा देखा 
कुछ इस कदर सब ने 
अपना चेहरा देखा  ..!!

रोशनी में रहते हैं लोग 
पर जहन में अंधेरा है 
बना कर दिल जमाने ने 
इस कदर मुझे तोड़ा है ,
कि टुकड़ा टुकड़ा हिस्सा 
जमीं पे गिरा है  ..!!

टूटा हूँ गिर कर 
किसी के हाथों से छूट कर 
ज़िन्दगी ने ही ले गया 
मेरी ज़िन्दगी लूट कर 

कल तक घर की शोभा थी 
आज किसी ने कुड़े में छोड़ा है 
बना कर दिल जमाने ने 
इस कदर मुझे तोड़ा है ,
कि टुकड़ा टुकड़ा हिस्सा 
जमीं पे गिरा है  ..!!!






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Tuesday, July 21, 2020

Hindi poem - Lata aur barish / लता और बारिश


Hindi poem Lata aur barish

लता और बारिश 

सुखी डाली में लता 
ऐसे लिपटी है ,
प्रेम की बारिश में छटा 
जैसे सिमटी है ..!

इन पत्तों में कुछ बूंदे पड़ी है 
आँखों में इनके नमीं तो नहीं है ,
खामोशी की फितरत में छिपी 
नासूर कोई जख़्म तो नहीं है ..!!

तूफां में डाली गिरे जहां पर 
पुष्प लता के गिरे वहां पर ,
सींच गया मन वेदना से 
नीर नयन के गिरे जहां पर ..!!

गिरे पुष्प में लिपटा 
ऐसे माटी है ,
प्रेम की बारिश में छटा 
जैसे सिमटी है ..!!!





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Sunday, July 19, 2020

Hindi poem - Shringar / श्रृंगार



Hindi poem


श्रृंगार  

कुछ शब्द थे मन में 
हमने अलंकार बना दिया ,
आईने में देख लो खुद को 
हमने श्रृंगार बना दिया  ..!!

जरा समेट लो अपने बालों को 
कुछ फूल खिले थे पास में 
हमने पुष्प हार बना दिया  ,
आईने में देख लो खुद को 
हमने श्रृंगार बना दिया  ..!!

कुछ पंखुड़ियां 
टूट कर गिर गए आंगन में 
हमने बहार बना दिया ,
आईने में देख लो खुद को 
हमने श्रृंगार बना दिया  ..!!

तेरी आंखों के आसमां में 
हमने बादल बना दिया ,
आईने में देख लो खुद को 
हमने काजल बना दिया  ..!!

दिल अंदर था मेरा 
बाहर निकाल कर 
हमने उपहार बना दिया ,
आईने में देख लो खुद को 
हमने श्रृंगार बना दिया  ..!!








Subodh Rajak 
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Hindi poem - Apman / अपमान


Hindi poem

अपमान 

मैदान में हारे हुए खिलाड़ी का 
मजाक कौन उडा़ता है? 
वही जो किनारे में बैठ कर 
तालियां बजाता है ..!

तालियां बजाने वाले को फर्क नहीं पड़ता है 
तुम जीते या कोई और 
फिर तुम्हें क्यों फर्क पड़ता है एक हार से 
अभी खेल बाकी है और  ..!!

सफलता कहां चल कर आती है 
ये असफलता का अनुभव ही 
एक दिन सफलता दिलाती है 

शब्द भी बाहर निकल कर 
अपना रंग बदल लेता है 
किसी को त्रीप्त कर देता है 
किसी का ह्रीदय तार तार कर देता है 

जिसने अपमान किया उसे झूठा अभिमान है 
जो अपमान को पी गया वही तो महान है  ..!!

पुरानी बात है, बुजुर्गों का कहना है 
जो जला है, वही शुद्ध सोना बना है  ..!!!









Subodh Rajak 
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Hindi poem - Aatma / आत्मा

  आत्मा   =========== रूकी हवा में  गहरी खामोशी  काली रात में  टहल रहा है कोई  पैरों के निशां नहीं है उसके हवा रोशनी वस्तु चींजे  सब पार हो ...