Monday, August 31, 2020

Hindi poem - Gujarti Subah / गुज़रती सुबह

 

Hindi poem

गुज़रती सुबह 
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आज फिर दिन गुज़रने लगा है ,
दर्श को तेरे मन तड़पने लगा है ..!

दिन ऐसे गुज़र जाता है 
जैसे हवा आता जाता है 
ठंड हवाओं की नमी से 
आंखों में पानी ठहरने लगा है 
दर्श को तेरे मन तड़पने लगा है 

हाल कुछ अपना अब खोने लगा है 
मेरी बैचेनी को देख 
मौसम भी बैचेन होने लगा है 
दर्श को तेरे मन तड़पने लगा है 

आज फिर दिन गुज़रने लगा है ,
दर्श को तेरे मन तड़पने लगा है ..!!

बात मुश्किल से होंटो पे आई है 
तेरे आने से सुबह की धूप आई है 
तेरी परछाई के संग मन चलने लगा है 
दर्श को तेरे मन तड़पने लगा है 

आज फिर दिन गुज़रने लगा है ,
दर्श को तेरे मन तड़पने लगा है  ..!!!





                           © Subodh Rajak 
SUBODH HINDI COMPOSITIONS 
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आपके आने से मेरा मनोबल बढ़ा है ! पुनः पधारे!  धन्यवाद  !!



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