Sunday, July 26, 2020

Hindi poem - Kitabon ke panne / किताबों के पन्नें


Hindi poem


किताबों के पन्नें 

एक किताब की 
कई सारे पन्नों के बीच 
फस कर दबा हूँ 

बाहर के धूल धूप गरमी जाड़ा 
से हांलाकि सुरक्षित हूँ 
स्वर की चादर ओढ़े 
रद्दी में पड़ा एक संगीत हूँ 

इस आस में हूँ कि 
कोई तो किताब उठाए 
अपनी उंगलियों से दबाकर 
पन्नों को हवा में दौड़ाए 

आंखों में एक 
बूंद की तरह अटका हूँ 
एक किताब की 
कई सारे पन्नों के बीच 
फस कर दबा हूँ  ..!!






Subodh Rajak 
SUBODH HINDI COMPOSITIONS 

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आपके आने से मेरा मनोबल बढ़ा है! पुनः पधारे! धन्यवाद!! 

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