धीमी आवाजें
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वो सूनी अनसुनी
दबी धीमी सी आवाजें
चलती चहल कूद में
शोर करती भीड़ में
वो मौन सरगोशी ,
कभी सुनाई पड़ती है
अकेलेपन में
विरानों में, शीत सुबह में
पढ़ी जाती हो कहीं कोई
नई नई नज़्में
वो सुनी अनसुनी
दबी धीमी सी आवाजें ..!!
किसी की आ:ह निकली होगी
जोरो से चीखा होगा कोई
बार बार कानों में गुंजती
जैसे पर्वत पर
टकराकर गुज़र आती है
हमारी आवाजें
धीरे धीरे कम होती
सुनाई पड़ती है
वो सुनी अनसुनी
दबी धीमी सी आवाजें ..!!
- सुबोध रजक
SUBODH HINDI COMPOSITIONS
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