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Friday, June 5, 2020

Hindi poem - Bhukh / भूख

Bhukh /भूख 


Hindi poem bhukh

Bhukh / भूख 

चार साल की 
वो मासूम आवाज़ 
जिसे मैं 
कभी नहीं भूल सकता 

उस वक्त मैं 
एक गहरी सोच में डूब गया 
और खड़ा रहा 
चुप चाप 
खम्भे की तरह 

वो कभी मुझे 
हिलाने की कोशिश करता 
तो कभी मेरे कपड़े खींचता 

उसके शब्दों ने 
मेरे आत्मा को झकझोर दिया
जब वह बोला - 
" भूख लागल हो! कुछु दे न! "




Subodh Rajak 
SUBODH HINDI COMPOSITIONS 

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