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Saturday, May 30, 2020

Hindi poem - 1:58 am

Hindi poem

1:58 am

जब सारी दुनिया सोया हो 
तब ऐसा लगता है कि 
बचपन की वो कहनी जीवंत हो उठी 
वही भूतों वाली कहानी 

इतनी रात को 
मैं क्यों जगा हूँ ?
एक बार उड़ने की कोशिश करता हूँ 
कहीं सपने में तो नहीं हूँ 

शुक्र है मैं सपने में नहीं हूँ 
ये रचना आप अवश्य पढ़ेंगे 

रात के 1:58 बजे हैं 
खयालों में भूतों की 
महफील सजे हैं 
अब नींद न आए शायद सुबह तक 
देखते हैं ये सफर जाता है कहां तक 

मौसम का रिश्ता 
शायद कलम से है 
जब भी लिखने बैठता हूँ 
इश्क़ कर बैठता है 

जब गुजरें हम 
कागज के गलियों से 
कलम ने साथ दिया है 
और उनके दो शब्दों ने 
क्या बात कहा है 
कि ज़िन्दगी गुजर गई बिताने में 
और अब मजा आ रहा जीने में ...!!







Subodh Rajak 
SUBODH HINDI COMPOSITIONS 

हमारी रचनाएं पढ़ने के लिए नीचे दिए लिंक में जा कर मेरे ब्लोग में पढ़ सकते हैं !

आपके आने से मेरा मनोबल बढ़ा है! पुनः पधारे! धन्यवाद !!



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