Hindi poem - Diya / दिया
दिया
वो दिया जो बुझी हुई है
बेकार किसी कोने में पड़ी हुई है
कुछ जली हुई राख है उसमें
कुछ वक्त की धुल पड़ी हुई है..!
कभी किसी मंदिर में जली
पूजा की थाली में सजी
कभी रोशन किया था किसी घर को
आज उसी घर के अंधेरों में
बेकार किसी कोने में पड़ी हुई है
वो दिया जो बुझी हुई है
बेकार किसी कोने में पड़ी हुई है..!!
लौ की विरहा में बेजान हो गई है शायद
वो चमक कहीं खो गई है
मकड़ों की जाल में सजी
एक पुरानी इमारत बनी हुई है
वो दिया जो बुझी हुई है
बेकार किसी कोने में पड़ी हुई है..!!
लौ की स्मरण में जलती होगी
हिज्र की आग में कभी कभी
अंधेरों में अक्सर
दिख जाता है धुआं कभी कभी
एक टूकड़ा बिखरा है कौने में
एक टूकड़ा कूड़े में पड़ी है
वो दिया जो बुझी हुई है
बेकार किसी कोने में पड़ी हुई है..!!
Subodh Rajak
SUBODH HINDI COMPOSITIONS
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