लम्बी रात
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रोशनी का पता नहीं
अंधेरों की सौगात है
धीरे धीरे गुजरती
एक लम्बी रात है...!
खामोश कमरे में
टिक टिक की आवाज़ें हैं
रूक रूक चलती
वक्त के तीन पहिए हैं
यादें आती है
नींद खो जाती है
यादों की छोटी सी
एक मुलाकात है
धीरे धीरे गुजरती
एक लम्बी रात है...!!
जो गुज़र गया दिल
फिर क्यों लिये बैठा है
एक याद के चक्कर में
रात गुज़ारे बैठा है
जिसका कोई जवाब नहीं
दिल के ऐसे सवालात हैं
धीरे धीरे गुज़रती
एक लम्बी रात है...!!
बैठे बैठे यूं रात गुज़र गया
हालात दिल के सुधर गया..
रह गया बाकी कुछ बात है
धीरे धीरे गुज़रती
एक और लम्बी रात है...!!!
© Subodh Rajak
SUBODH HINDI COMPOSITIONS
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