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Friday, May 15, 2020

Hindi poem - prawasi majdur / प्रवासी मजदूर



प्रवासी मजदूर 
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चलते चलते पड़े, पैरों में छालें 
रास्ते बता रे, मंजिल कहां रे...
एक तू संग है, इन राहों में 
मिले विराने, जाउं मैं जहां रे... 
रास्ते बता रे, मंजिल कहां रे...! 

उठा के बोझ जिम्मेदारी का 
परवाह नहीं की, बिमारी का, 
रख के चला जान हथेली पर 
देख तमाशा, लाचारी का...

दिल रोए बार बार 
है दिल तेरा कहां रे 
रास्ते बता रे, मंजिल कहां रे..!! 

याद आए खाने की थाली 
पर हैं जेब अपना खाली 
भूखा चलुं, भूखा सोउं 
अपना जग में कौन यहां रे 
रास्ते बता रे, मंजिल कहां रे.. 

चलते चलते पड़े, पैरों में छालें
चलते जाना है, मौत आए भले 
अब और नहीं कुछ, अपना बचा रे.. 
रास्ते बता रे, मंजिल कहां रे..!! 

पत्थरों की ठोकरें मिली, दर्द छालों का
जिन्दा रखा है हमको, यादे घर वालों का 
पल पल मरता हूँ, पता ज़िन्दगी का कहां रे 
रास्ते बता रे, मंजिल कहां रे..!!! 

साथी तुम्हें कहने को है कई बातें 
कटती नहीं है तन्हा ये लम्बी राते
चन्दा ले जा मेरा संदेशा 
उनका उम्मीद जिन्दा यहां रे.. 
रास्ते बता रे, मंज़िल कहां रे..!!!









Subodh Rajak 
SUBODH HINDI COMPOSITIONS 

हमारी रचनाएं पढ़ने के लिए नीचे दिए लिंक में जा कर मेरे ब्लोग में पढ़ सकते हैं! 

आपके आने से मेरा मनोबल बढ़ा है!  पुनः पधारे!  धन्यवाद  !!


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