Hindi poem - Galiyan/ गलियां
गलियां
एक दिन यूहीं गुज़रा उन गलियों से
वही पुरानी फूल झांक रही थी डालियों से
जब पड़ा उसमें सुबह का धूप
खिल उठा उसका सुंदर रूप
दिल क्यों उलझ पड़ा उन कलियों से
एक दिन यूहीं गुजरा उन गलियों से..!
वो खुशबू, मन लुभाती है
वो रंग,दिप कई जलाती है
रोशन है वो अंधेरी गली
ये रास्ते मंजिलें बताती है
मंत्र मुग्ध हो गया सुनकर जो संगीत
बजी है न जाने किन उंगलियों से
एक दिन यूहीं गुजरा उन गलियों से..!!
धीरे धीरे बढ़ रही थी कदमों की डोर
खिंच रही थी एक लकीर
ये लकीर कोई धागा था या कुछ और
हम उलझ गए उसमें न मिला कोई छोर
खिलते देख उन कलियों को
भंवरों ने स्वागत किया तालियोें से
एक दिन यूहीं गुजरा उन गलियों से..!!
गिर कर बढाई थी शोभा राहों की
जिन राहों पर हम गुजरें
या खुदा सुलाना मुझे उस जमीं पर
जिस कब्र पर वो बिखरे!
छुपा के आंसू गुजरा जिन महफिलों से
एक दिन यूं हीं गुजरा उन गलियें से..!!!
Subodh Rajak
SUBODH HINDI COMPOSITIONS
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