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जाऊंगा उधर मिल जाए तू जिधर
बनाया हूं बहाना ये किसी से न कहना
ये आपस की बात है जरा ध्यान से सुनना
बदल गया हूँ मैं सबका है ये कहना
तुम क्या सोचती हो जरा अपना बताना
तेरे पीछे दौड़कर ज़िन्दगी जाये ना गुज़र
निकला हूं घर से बस यही सोच कर
जाऊंगा उधर मिल जाए तू जिधर ..
जब भी तेरे घर से गुज़रता हूं
तुम्हारे ही बारे में सोचता हूं
तेरी एक झलक पाने के लिए
सभी से नजरें चुराता हूँ
मन भर जाता है
जब आती हो तुम मुस्कुराकर
निकला हूं घर से बस यही सोच कर
जाऊंगा उधर मिल जाए तू जिधर..
मौसम सुहाना लगता है
जब सामने तुम आती हो
भूल जाता हूँ सब कुछ तुम्हें देखकर
इतनी सुन्दर क्यों लगती हो
चाहा हूँ तुम्हें खुलकर
इस दुनिया में सब कुछ भूल कर
निकला हूं घर से बस यही सोच कर
जाऊंगा उधर मिल जाए तू जिधर.. !!
© Subodh Rajak
SUBODH HINDI COMPOSITIONS
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धन्यवाद !!