लहू उर नब्ज की
शीशा टूट कर
चुभा था अंदर
वो आखरी
टुकड़ा भी निकल गया ,
जख्म कुछ भर गए
कुछ नासूर हो गए
लहू उर नब्ज की
आंखों से निकल गया ..!!
लम्बे सफर में निकला हूँ
पैरों में छाले पड़े हैं
झुलसती धूप में
चेहरे काले पड़े हैं ,
उम्मीद छाँव की
हम कहां रखें
पेड़ों की पत्तियाँ
गिरे पड़े हैं ..!!
जब खंजर
दिल से निकला था
फिर क्यों
हाथों से फिसल गया
लहू उर नब्ज की
आंखों से निकल गया ...!!!
Subodh Rajak
SUBODH HINDI COMPOSITIONS
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आपके आने से मेरा मनोबल बढ़ा है! पुनः पधारे! धन्यवाद!!
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