Saturday, August 1, 2020

Hindi poem - Lahu ur nabj / लहू उर नब्ज


Subodh hindi compositions


लहू उर नब्ज की 

शीशा टूट कर 
चुभा था अंदर 
वो आखरी 
टुकड़ा भी निकल गया ,
जख्म कुछ भर गए 
कुछ नासूर हो गए 
लहू उर नब्ज की 
आंखों से निकल गया  ..!!

लम्बे सफर में निकला हूँ 
पैरों में छाले पड़े हैं 
झुलसती धूप में 
चेहरे काले पड़े हैं ,
उम्मीद छाँव की 
हम कहां रखें 
पेड़ों की पत्तियाँ 
गिरे पड़े हैं  ..!!

जब खंजर 
दिल से निकला था 
फिर क्यों 
हाथों से फिसल गया 
लहू उर नब्ज की 
आंखों से निकल गया ...!!!





Subodh Rajak 
SUBODH HINDI COMPOSITIONS 

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आपके आने से मेरा मनोबल बढ़ा है! पुनः पधारे! धन्यवाद!! 

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