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Thursday, June 11, 2020

Hindi poem - Lachar/ लाचार

Hindi poem - Lachar /लाचार 

Hindi poem lachar


Hindi poem - Lachar/लाचार 


एक, दो, तीन, चार 
मैं हूँ लाचार 
मिलता नहीं बिरयानी
खाता हूँ अचार..!

मिलता है मुश्किल से रोटी 
किस्मत है खोटी 
सरकार भी नहीं सुनता 
चलाता है लाठी 

डॉक्टर से हो गया कहा सूनी 
रहता हूँ हर वक्त बीमार 
एक, दो, तीन, चार 
मैं हूँ लाचार..!! 

चलता हूं पैदल 
है नहीं गाड़ी 
दूर है मंजिल 
बंगाल की खाड़ी 

बंगाल की खाड़ी में डूब कर 
उपर वाले से कहना है 
कि मुझे और नहीं जीना है 
क्यों करते हो अत्याचार 

एक, दो, तीन, चार...!!!




Subodh Rajak 
SUBODH HINDI COMPOSITIONS 

हमारी रचनाएं पढ़ने के लिए नीचे दिए लिंक में जा कर मेरे ब्लोग में पढ़ सकते हैं! 


आपके आने से मेरा मनोबल बढ़ा है! पुनः पधारें! 
धन्यवाद! 

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