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Sunday, July 19, 2020

Hindi poem - Pattharon ka dard / पत्थरों का दर्द


Hindi poem


पत्थरों का दर्द 

एक ढाल पे बहता पानी है 
पत्थरों के दर्द की कहानी है 

जल की धारा से टूटा है 
दरारों में किसी का आशियाना है 
कुछ हरे हरे शैवाल पड़ गए हैं 
कुछ किड़ों का ठिकाना है 

कोई करिश्मा है या 
कुदरत की कोई नादानी है ,
एक ढाल पे बहता पानी है 
पत्थरों के दर्द की कहानी है ..!!

तीर जिगर में घुसा 
या जिगर तीर में गिरा 
नासूर जख्म की निशानी है 

एक ढाल पे बहता पानी है 
पत्थरों के दर्द की कहानी है ..!!







Subodh Rajak 
SUBODH HINDI COMPOSITIONS 

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आपके आने से मेरा मनोबल बढ़ा है! पुनः पधारे! धन्यवाद !!

Saturday, July 4, 2020

Hindi poem - Dil ki aadat / दिल की आदत ( heart's habit )


Hindi poem

दिल की आदत 

आदत सी हो गई है 
दिल को अब दर्द का 
काम नहीं करता 
कोई दवा इस मर्ज का 

मुश्किल है धूप में चलना 
सड़कें गरम हो गई है ,
जख्म न भरते हैं चोट न रूकते हैं 
दर्द बेशरम हो गई है ..

ब्याज चुकता नहीं 
मूल बाकी है इस कर्ज का 
आदत सी हो गई है 
दिल को अब दर्द का ...!!

शाम का परिंदा चला गया कहीं 
अब वह लौटता नहीं 
घंटो बैठा करते थे जिसके साथ 
ठंडी शाम को चुल्हे के पास 
अब वो कुछ बोलता नहीं 
नजरें उठा कर देखता नहीं 

दिख जाते हैं 
गलियों में कभी कभी 
बीतें हैं याद में जिनके 
रात कई शर्द का 
आदत सी हो गई है 
दिल को अब दर्द का ...!!!







Subodh Rajak 
SUBODH HINDI COMPOSITIONS 

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Friday, May 1, 2020

Hindi poem - Ham bikhar gaye / हम बिखर गए


हम बिखर गए 

ज़िन्दगी में हम जिधर गए 
टूट कर हम बिखर गए.. 

कुछ भी नहीं मिला हमें 
दर्द और अकेलापन के सिवा 
नमक मिला जख्मों में 
जिस दावत पे हम गए 

ज़िन्दगी में हम जिधर गए 
टूट कर हम बिखर गए.. 

दुनिया में वो मशहूर है 
खुद पे जिसे गुरुर है 
बात इतनी सी नहीं कि हम भूल जाएं 
देने वालों का जख़्म भी नासूर है.. 

विरानों में ऐसे हम खो गए 
कि ज़िन्दगी में हम जिधर गए 
टूट कर हम बिखर गए.. 

टूटे टूटे से ख़्वाब है 
इसका न कोई जवाब है 
दर्द तो मुझे भी हुआ होगा न 
जब तीर दिल के भीतर गए 

ज़िन्दगी में हम जिधर गए 
टूट कर हम बिखर गए ..

कभी फूल बनकर 
कांटो में खिला हूं 
कभी कांटा बनकर 
दिलों में चुभा हूं 
जीवन का दीपक हूं 
जल जल कर बुझा हूँ 

दिखाएं भी तो कैसे दिखाएं
अपने नम आंखों को 
दिल में नासूर बनते 
हर घाव हर जख़्मो को 

माना कि हमने नजरें झुका ली 
पर आपकी नजरों से 
हम क्यों गिर गए 

ज़िन्दगी में हम जिधर गए 
टूट कर हम बिखर गए.. !!







                         © Subodh Rajak 
SUBODH HINDI COMPOSITIONS 

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Hindi poem - Aatma / आत्मा

  आत्मा   =========== रूकी हवा में  गहरी खामोशी  काली रात में  टहल रहा है कोई  पैरों के निशां नहीं है उसके हवा रोशनी वस्तु चींजे  सब पार हो ...