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Wednesday, June 24, 2020

Hindi poem - Machhali / मछली (fish)

Hindi poem - Machhali / मछली (fish) 

Hindi poem machhali


मछली

कुछ देर देखता रहा शीशे में तुझे 
और तेरी जल नगरी को 
तेरी और मेरी दुनिया के बीच में 
एक पतली सी कांच की दिवार है 
न मैं उस पार जा सकता हूँ 
और न ही तुम इस पार आ सकती हो 
तेरी भी दुनिया में कुछ हरा भरा है 
तुम्हारे साथ भी कुछ नीला पीला सुनहरा है 
काश तुम्हारी बातें मैं समझ पाता 
तुम भी कुछ लिख पाती हिन्दी में 
तुम्हारी बातें सुनता बैठकर 
दो शब्द ला पाती अगर होंठो में 

तुम भी सोचती होगी 
ये कौन ताक रहा है तब से वायुमंडल से 
ये अजीबोगरीब प्राणी 
न गलफड़े हैं उसके न पूँछ है 
ऑक्सीजन भी लेता है या नहीं? 

लेता हूँ! 
ऑक्सीजन के खर्चे से ही चल रहा है 
धरती का सफर! 

ठीक है फिर! मिलते हैं 
बहुत देर हो गई, अब चलना है मुझे 
बहुत देर से देख रहा हूँ शीशे में तुझे..!! 







Subodh Rajak 
SUBODH HINDI COMPOSITIONS 

हमारी रचनाएं पढ़ने के लिए नीचे दिए लिंक में जा कर मेरे ब्लोग में पढ़ सकते हैं! 

आपके आने से मेरा मनोबल बढ़ा है! पुनः पधारे धन्यवाद!!


the time

Where did go ? "the time!" The time The people The old hut near by home Where did go?  Where did go? "the night...