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Tuesday, July 7, 2020

Hindi sawan geet - Shankar ke nagri me / शंकर के नगरी में


Hindi sawan geet

शंकर के नगरी में 

चल संग मेरे संग 
थोड़ा घूम के आऊंगा 
बाबा शंकर के नगरी में 
थोड़ा झूम के आऊंगा

घर में थोड़ा घबराता हूँ 
गाँव में थोड़ा शरमाता हूँ 
वहां खुल के गाऊंगा ,
बाबा शंकर के नगरी में 
थोड़ा झूम के आऊंगा  ..!!

चल संग मेरे संग 
ना करनी तुझको जंग 
तू भी संग मेरे 
जरा हाथ बढ़ा देना ,
बाबा को मेरे 
तू भी जल चढ़ा देना ..

भक्ति है दिल में 
मैं ना अब रूकुंगा ,
बाबा शंकर के नगरी में 
थोड़ा झूम के आऊंगा  ..!!

अपना सब कुछ है 
बाबा के चरण में 
जीना मरना है अब 
बाबा के शरण में 

प्रेम प्रसाद है मन में 
बाबा को चढ़ाऊंगा 
बाबा शंकर के नगरी में 
थोड़ा झूम के आऊंगा  ..!!

इक काँवर तुम्हारा है 
इक काँवर हमारा है 
बोल बम बोल बम 
बोल बम का नारा है 
दिल में इसे उतारा है 

बोल बम का नारा मैं 
जोर से लगाऊंगा 
चल संग मेरे संग 
थोड़ा घूम के आऊंगा 

बाबा शंकर के नगरी में 
थोड़ा झूम के आऊंगा  ..!!!








Subodh Rajak 
SUBODH HINDI COMPOSITIONS 

हमारी रचनाएं पढ़ने के लिए नीचे दिए लिंक में जा कर मेरे ब्लोग में पढ़ सकते हैं! 

आपके आने से मेरा मनोबल बढ़ा है!  पुनः पधारे!  धन्यवाद!! 

Saturday, May 2, 2020

Hindi poem - Nikala hu / निकला हूँ


निकला हूँ 
.....................


निकला हूं घर से  बस यही सोच कर 
जाऊंगा उधर  मिल जाए तू जिधर 

बनाया हूं बहाना ये किसी से न कहना 
ये आपस की बात है जरा ध्यान से सुनना 
बदल गया हूँ मैं  सबका है ये कहना 
तुम क्या सोचती हो जरा अपना बताना 

तेरे पीछे दौड़कर ज़िन्दगी जाये ना गुज़र 
निकला हूं घर से बस यही सोच कर 
जाऊंगा उधर मिल जाए तू जिधर ..

जब भी तेरे घर से गुज़रता हूं 
तुम्हारे ही बारे में सोचता हूं 
तेरी एक झलक पाने के लिए 
सभी से नजरें  चुराता हूँ 

मन भर जाता है 
जब आती हो तुम मुस्कुराकर 
निकला हूं घर से बस यही सोच कर 
जाऊंगा उधर मिल जाए तू जिधर.. 

मौसम सुहाना लगता है 
जब सामने तुम आती हो 
भूल जाता हूँ सब कुछ  तुम्हें देखकर 
इतनी सुन्दर क्यों लगती हो 

चाहा हूँ तुम्हें खुलकर 
इस दुनिया में सब कुछ भूल कर 
निकला हूं घर से बस यही सोच कर 
जाऊंगा उधर मिल जाए तू जिधर.. !!







                          © Subodh Rajak 
SUBODH HINDI COMPOSITIONS 

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धन्यवाद  !!

Wednesday, April 29, 2020

Hindi poem - Sukun / सुकून



सुकून 

दूर हो के तुमसे ओ अजनबी 
दिल को ना सुकून है 
बंजारा सा दिन है 
तन्हा सा रात है 
जिन्दा नहीं मैं 
पर  धड़कनें महफूज हैं 
दूर हो के तुमसे ओ अजनबी 
दिल को ना सुकून है 

दो पल के मिलन में 
जीवन का संसार था 
ऐहसास के राख में 
बुझा बुझा सा प्यार था 

कैसे रहुं खुशनुमा 
ओ साथी तेरे बिना 
दिल मैहरूम है 
दूर हो के तुमसे ओ अजनबी 
दिल को ना सुकून है 

रूक जा रे दिल 
ये धड़कनें बेकसूर है 
भुला दे उसे तू 
फिर माफ तुझे हर खून है 
दूर हो के तुमसे ओ अजनबी 
दिल को ना सुकून है 

ना सुकून है.. ना सुकून है.. 







                        © Subodh Rajak 
SUBODH HINDI COMPOSITIONS 

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Hindi poem - Aatma / आत्मा

  आत्मा   =========== रूकी हवा में  गहरी खामोशी  काली रात में  टहल रहा है कोई  पैरों के निशां नहीं है उसके हवा रोशनी वस्तु चींजे  सब पार हो ...