फिर मिलते हैं
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चलो एक बार
फिर वहीं मिलते हैं ..
नदी के किनारे
बड़े बड़े पत्थरों पर
दरारों में निकली
मुलायम घास को छुते हैं ..
ठंडी शाम में
फिर एक बार
ढलती सूरज को निहारते हैं ..
किनारों में लेट कर
कल कल करती
जल धारा को सुनते हैं
चलो एक बार
फिर वहीं मिलते हैं ...!!
अब जमाना हो गया
तुम्हें देखे हुए
चलो मिलकर
फिर एक बार खिल खिलाते हैं
चलो एक बार
फिर वहीं मिलते हैं ..!!
कुछ नए-नए लोग
बस गए होंगे शायद
उन पुरानी गलियों में
पता नहीं, क्या बंधा मिले
झुलों वाली डालियों में ...
पर, एक-दो मुस्कुराते
चेहरे तो मिलेंगे
चलो थोड़ा उन्हीं से मिल आते हैं ..
चलो एक बार
फिर वहीं मिलते हैं..!!
Subodh Rajak
SUBODH HINDI COMPOSITIONS
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आपके आने से मेरा मनोबल बढ़ा है! पुनः पधारे धन्यवाद!!