|| मुस्कान ||
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तेरे होठो पर कुछ
निकल आई है
सोचता हूँ
बिना कहे तुमसे
चुरा लुं इसे
जैसे गुलाब की पंखुड़ियां
बिखर कर यहाँ
और भी खुबसुरत
हो गई है
ये कौन सी चीज है
जो तेरे होठो पर
निकल आई है
सोचता हूँ
बिना कहे तुमसे
चुरा लुं इसे
~...~...~...~...~
ये मुस्कान
जो तेरे होंठों पर
निकल आई है
कहां से आई है?
कहीं से तो
आई होगी
इतना स्वादिष्ट व्यंजन
किसी ने तो
पकाई होगी
ये पंखुड़ियां
जो आ कर यहाँ
बिखर गई है
ये सुंदर कली
कहीं न कहीं
खिला होगा
इसको जीवन जल
कहीं न कहीं से
मिला होगा
ये दरिया रस का
किस मुहाने से
निकल आई है
ये मुस्कान
जो तेरे होंठों पर
निकल आई है
कहां से आई है ?..!!
© Subodh Rajak
SUBODH HINDI COMPOSITIONS
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