ख़ामोशी
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आज कल
खामोश रहता हूँ
उन महफिल में जहां
बड़ा शोर होता है
क्योंकि
यहां कोई सुनने वाला नहीं
बस आवाजें हैं
अंदर
चीखती, चिल्लाती
दर्द से तड़पती
आत्माएं हैं
बाहर
तो बस मुस्कुराते
नकली चेहरे हैं
खामोश रहता हूँ
उन दोस्तों के बीच
जो आजकल
कुछ बोलते नहीं
कई राज
छिपे रह जाते हैं
जो कभी खुलते नहीं
खामोश रहता हूँ
उस बाजार में
जहां कई तरह के सामान
खरीदे और बेचे जाते हैं
रिश्तों के तराजू में
मतलब और फायदे
तौले जाते हैं
खामोश रहता हूँ
उस घर में
जहां आजकल
कोई कुछ बोलता नहीं
बस कुर्सी में बैठा रहता हूँ
खामोशी को लिये
और खामोशी को
करीब से महसूस करता हूँ
आज कल
खामोश रहता हूँ
© Subodh Rajak
SUBODH HINDI COMPOSITIONS
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