|| कुछ ऐहसास ||
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कुछ ऐहसास
शब्दों से स्पष्ट नहीं होता
जैसे भीगे हुए चेहरे में
आंसू की पहचान नहीं होता
सब कुछ छिपा लेना
इतना आसान नहीं होता ,
छिप जाते हैं
कुछ बोल लबों के
हर बार मुस्कुराना
इतना आसान नहीं होता !!
उम्मीद को हमने
इस कदर जकड़ा है
कि डूबती सांसों ने
तिनका तिनका पकड़ा है
पर कभी न कभी
उम्मीद की पकड़
छुट जाता है ,
कांच हो या सपने
मर्यादा की उंचाई से गिर कर
टूट जाता है ..!!
जैसे ढेर रेत का
मुट्ठी में नहीं समाता ,
कुछ ऐहसास
शब्दों से स्पष्ट नहीं होता ..!!
© Subodh Rajak
SUBODH HINDI COMPOSITIONS
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https://subodhrajak.blogspot.com
आपके आने से मेरा मनोबल बढ़ा है! पुनः पधारे! धन्यवाद!!
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