Saturday, November 8, 2025

the time


Where did go ? "the time!"
The time
The people
The old hut near by home
Where did go? 
Where did go? "the night"
The sky
The star
The shining in the dark
The breeze blow overnight
Where did go? "the time!"
The night
The sleep
The peace of mind
Where did go? 
The heart and kind. 

Tuesday, March 9, 2021

Hindi poem - Aatma / आत्मा

 



आत्मा 

===========

रूकी हवा में 

गहरी खामोशी 

काली रात में 

टहल रहा है कोई 

पैरों के निशां नहीं है उसके

हवा रोशनी वस्तु चींजे 

सब पार हो जाए उससे 

रंग रूप आकार समझ न आए 

रात को सोने के बाद 

अंधेरे को चीर 

आकाश गंगा में जा मिलता हूँ 

ऐसा लगता है 

आईने के अंदर 

खुद से जा मिलता हूँ  ..!!



**********************








© Subodh Rajak 

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Sunday, November 15, 2020

Hindi poem - Fir milte hai / फिर मिलते हैं

 


फिर मिलते हैं 

....................................


चलो एक बार 

फिर वहीं मिलते हैं ..

नदी के किनारे 

बड़े बड़े पत्थरों पर 

दरारों में निकली 

मुलायम घास को छुते हैं ..

ठंडी शाम में 

फिर एक बार 

ढलती सूरज को निहारते हैं ..

किनारों में लेट कर 

कल कल करती 

जल धारा को सुनते हैं 

चलो एक बार 

फिर वहीं मिलते हैं ...!!


अब जमाना हो गया 

तुम्हें देखे हुए 

चलो मिलकर 

फिर एक बार खिल खिलाते हैं 

चलो एक बार 

फिर वहीं मिलते हैं ..!!


कुछ नए-नए लोग 

बस गए होंगे शायद 

उन पुरानी गलियों में 

पता नहीं, क्या बंधा मिले 

झुलों वाली डालियों में ...


पर, एक-दो मुस्कुराते 

चेहरे तो मिलेंगे 

चलो थोड़ा उन्हीं से मिल आते हैं ..

चलो एक बार 

फिर वहीं मिलते हैं..!! 





Subodh Rajak 

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Tuesday, October 27, 2020

Hindi poem - Neeli pattiyan / नीली पत्तियाँ

 


= नीली पत्तीयां =

..............................

आसमान से रंग चुराकर 

नीली हो गई हरी पत्तियाँ

मिलने लगे हैं अब हाट पर 

नीला पालक नीली सब्जियां 

आसमान से रंग चुराकर 

नीली हो गई हरी पत्तियाँ 


कुछ तो लाल पीले भी थे 

गहरा कत्थई बागों में खिले भी थे 

आसमां संग घुल गई है 

खेतों की ये बस्तियां 

आसमान से रंग चुराकर 

नीली हो गई हरी पत्तियाँ 


जंगल झाड़ अब नहीं दिखते 

अंतरिक्ष की ऊंचाई से 

तिनका तिनका नीला पड़ गया 

अद्भुत सी सिंचाई से 


सूर्य की नीली रोशनी पड़ी है 

नहीं जलती अब लाल बत्तीयां 

आसमान से रंग चुराकर 

नीली हो गई हरी पत्तियाँ  ..!!


~...~...~...•••••••...~...~...~


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Tuesday, October 6, 2020

आधी रात ( Midnight )

 


आधी रात 

..............................

इक गहरी खामोशी है 

सन्नाटो में डूबा है वक्त 

बेबस है सारे जीव जन्तु 

रोशनी की उम्मीद है, 

कुछ खुली होंगी आंखें 

मेरी तरह 

पल पल वक्त काटता होगा कोई 

इस इंतजार में होगा कि 

कब यह अंधेरी बादल हटे 

और गोधूलि चमक उठे ..!!


वहीं कुछ सपनों के मुसाफिर 

खोया होगा किसी सपने में 

लुसिड की दुनिया में 

लड़ रहा होगा किसी राक्षस से 

व्यस्त होगा खुद को 

या अपनों को बचाने में ..!!

...~...~...~...~...~...

अंधेरा हट जाएगा थोड़ी देर में 

बैठेगी रोशनी 

अपने आसन में 

चहल कूद फिर मच उठेगा 

धरती के आँगन में ..!!





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Monday, October 5, 2020

Mushroom / मशरूम

 


मशरूम 

........................

मशरूम तेरी टोली 

है कहां बता ?

कब मिलेगा तू 

मिलने का समय बता !

सुना है बारिश 

होती है जिस रात को 

खिल जाते हो झाड़ियों में 

चुप चाप आधी रात को 

न होता कोई डाली तेरी 

न होता लता पता 

मशरूम तेरी टोली 

है कहां बता ?

कब मिलेगा तू 

मिलने का समय बता !


तू हरा होता नहीं 

पौधे वाली गुण 

तुझमें तो दिखता नहीं 

फिर भी तुझमें स्वाद भरा 

लोग तुम्हें 

बड़े चाव से खाता 

मशरूम तेरी टोली 

है कहां बता? 

कब मिलेगा तू 

मिलने का समय बता !!




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Sunday, September 27, 2020

Hindi poem - Subah ki dhup / सुबह की धूप

 


सुबह की धूप 

........................

देखो तो जरा 

सुबह की धूप आई है 

सज धज के 

बन सवर के 

क्या खूब आई है 

देखो तो जरा 

सुबह की धूप आई है 


चिड़ियों वाली संगीत 

फूलों में बिखरा 

सुंदर रूप लाई है 

कलियों के बसेरों में 

तितलीयों के पंखो में 

रंगरस क्या खूब आई है 

देखो तो जरा 

सुबह की धूप आई है  ..!!


आसमां से उतरा हो जैसे 

खुशबू गुलाब का 

जैसे चाँद उतर आया हो 

रात भर थककर ,

जैसे पनघट से आई हो 

कोई परी नहाकर ..!!


निखरती रंग रूप लिए 

कोई अप्सरा उतर आई है 

देखो तो जरा 

सुबह की धूप आई है 

सज धज के 

बन सवर के 

क्या खूब आई है ,

देखो तो जरा 

सुबह की धूप आई है  ..!!





                         Subodh Rajak 

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Friday, September 25, 2020

Hindi poem - Dheemi awajen / धीमी आवाजें

 

Dhimi aawajen


धीमी आवाजें

...........................

वो सूनी अनसुनी 

दबी धीमी सी आवाजें

चलती चहल कूद में 

शोर करती भीड़ में 

वो मौन सरगोशी ,

कभी सुनाई पड़ती है 

अकेलेपन में 

विरानों में, शीत सुबह में 

पढ़ी जाती हो कहीं कोई 

नई नई नज़्में 

वो सुनी अनसुनी 

दबी धीमी सी आवाजें ..!!


किसी की आ:ह निकली होगी 

जोरो से चीखा होगा कोई 

बार बार कानों में गुंजती 

जैसे पर्वत पर 

टकराकर गुज़र आती है 

हमारी आवाजें 

धीरे धीरे कम होती 

सुनाई पड़ती है 

वो सुनी अनसुनी 

दबी धीमी सी आवाजें  ..!!






                              - सुबोध रजक  

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Saturday, September 19, 2020

Hindi poem - Nayee Sawera / नई सवेरा ( New Morning )

 


नई सवेरा 

.................................


उठ जा नई सवेरा है 

अब ये दिन तुम्हारा है 

तेरे जिद्द के आगे 

हर मुश्किल तो हारा है 

उठ जा नई सवेरा है 

अब ये दिन तुम्हारा है ..!


एक बड़ा तूफ़ान 

बाहर जो पसरा है 

तेरे इरादों के चट्टानों में 

टकराने से बिखरा है 

मन हर्षित हो जाए 

ऐसा कोई नज़ारा है 

उठ जा नई सवेरा है 

अब ये दिन तुम्हारा है ..!!


ये परिश्रम ना हो कम 

दिखने दो अंदर का दम 

अग्नि पुष्प ये अंदर का 

ह्रिदय में खिला तुम्हारा है 

उठ जा नई सवेरा है 

अब ये दिन तुम्हारा है ..!!!






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Sunday, September 13, 2020

Hindi poem - Khamoshi / ख़ामोशी

 


ख़ामोशी 
.................................

आज कल 
खामोश रहता हूँ 
उन महफिल में जहां 
बड़ा शोर होता है 
क्योंकि 
यहां कोई सुनने वाला नहीं 
बस आवाजें हैं 
अंदर
चीखती, चिल्लाती 
दर्द से तड़पती 
आत्माएं हैं 
बाहर 
तो बस मुस्कुराते 
नकली चेहरे हैं 

खामोश रहता हूँ 
उन दोस्तों के बीच 
जो आजकल 
कुछ बोलते नहीं 
कई राज 
छिपे रह जाते हैं 
जो कभी खुलते नहीं 

खामोश रहता हूँ 
उस बाजार में 
जहां कई तरह के सामान 
खरीदे और बेचे जाते हैं 
रिश्तों के तराजू में 
मतलब और फायदे 
तौले जाते हैं 

खामोश रहता हूँ 
उस घर में 
जहां आजकल 
कोई कुछ बोलता नहीं 
बस कुर्सी में बैठा रहता हूँ 
खामोशी को लिये 
और खामोशी को 
करीब से महसूस करता हूँ 
आज कल 
खामोश रहता हूँ 




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Sunday, September 6, 2020

Hindi poem - Nasha / नशा ( drugs )

 

Hindi poem nasha / drugs

Drugs / नशा 

....................................


कुछ लोग नशा लेते हैं ,

कुछ लोग मजा लेते हैं ..!


इन नशीली चीजों से 

किसका भला हुआ है 

राख भरी है अंदर 

हर कोई जला हुआ है 

अपने संग वो अपना 

घर भी जला लेते हैं 

कुछ लोग नशा लेते हैं 

कुछ लोग मजा लेते हैं 


मतलब से 

मतलब रखते हैं 

मतलब नहीं तो 

कोई मतलब नहीं रखता ,

क्या हो जाता 

अगर कोई 

ये ज़हर नहीं रखता ..!!


दुनिया से अलग होकर सभी 

खुद को भूला लेते हैं ,

कुछ लोग नशा लेते हैं 

कुछ लोग मजा लेते हैं  ..!!





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Saturday, September 5, 2020

Hindi poem - Shikshak / शिक्षक ( teacher )

 

Hindi poem Shikshak

शिक्षक 

...........................


ईश्वर बता 

शिक्षक का स्थान कहां 

बिन गुरू जग में 

मेरी पहचान कहां ?


जीवन की 

इस भूल भूलईया में 

खो जाता हर कोई ,

मिलता अगर न

मार्गदर्शक कोई ..!!


न मिलता हमे 

जीवन सार्थक सारथी 

करता फिर अभिमान कहां 

ईश्वर बता 

शिक्षक का स्थान कहां 

बिन गुरू जग में 

मेरी पहचान कहां ?





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Thursday, September 3, 2020

Hindi poem - Dincharya / दिनचर्या

 

Hindi poem Kuch Karo

दिनचर्या 

.................................


जब सुबह उठते ही हो 

तो थोड़ा खिड़की खोलो 

परदा हटाओ 

थोड़ा धूप लो 

विटामिन डी मिलेगा !

ब्रश करो मुंह धोवो 

नाश्ते में जरूर 

कुछ अच्छा मिलेगा !!

किन खयालों में रहते हो 

इतना खयालों में जीना 

अच्छी बात नहीं 

यूं पड़े पड़े समय बिताना 

अच्छी बात नहीं 

उठो दौड़ो तब तक ना रूको 

जब तक कुछ मिल न जाए 

पैर मारते रहो 

जब तक कुछ हिल न जाए 

बिना कुछ किए करता 

कोई मुलाकात नहीं 

वैसे भी हाथ पे हाथ धर के बैठ जाना 

अच्छी बात नहीं !!

जब इस दुनिया में आए हो 

तो थोड़ा परिश्रम करो 

पसीना बहावो फल मिलेगा 

आज नहीं तो कल मिलेगा 

मुंह फेर कर जाने वाले 

फिर मुस्कुराते हुए मिलेगा 

इस दुनिया के घर में 

हम सब मेहमान हैं

यहां सब को कुछ दिन रूकना है 

फिर क्यों आपस में रूठना है 

खुशीयां बांटो 

खुशीयां मिलेगा 

सब उपर वाले की देन है 

कौन भला 

क्या ठुकराएगा  !

ये दुनिया आईना है बाबू 

मुस्कुरा कर देखो 

तो जग मुस्कुराएगा  !!





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Tuesday, September 1, 2020

Hindi poem - Andhere me hun / अंधेरे में हूँ

 

Hindi poem - Andhere me hun

अंधेरे में हूँ 

..............................


कैसे देख पाओगे मुझे 

मैं अंधेरे में हूँ 

जूगनुओं की बस्ती में 

किसी पगडंडी में 

रात के गलियारे में हूँ !

इक सफर में 

मैं अकेला हूँ 

घनी रात में मंजिल 

कुछ साफ नहीं दिखता

किसी गहरी खाई के 

किनारे में हूँ 

मैं अंधेरे में हूँ !

उजाले की तलाश में 

भटकता ठोकर खाता 

उम्मीद की ज्योत जलाए 

न रूकता न थकता 

ठंड से कपकपाता 

घने कोहरे में हूँ 

मैं अंधेरे में हूँ ..!!





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Monday, August 31, 2020

Hindi poem - Gujarti Subah / गुज़रती सुबह

 

Hindi poem

गुज़रती सुबह 
.................................

आज फिर दिन गुज़रने लगा है ,
दर्श को तेरे मन तड़पने लगा है ..!

दिन ऐसे गुज़र जाता है 
जैसे हवा आता जाता है 
ठंड हवाओं की नमी से 
आंखों में पानी ठहरने लगा है 
दर्श को तेरे मन तड़पने लगा है 

हाल कुछ अपना अब खोने लगा है 
मेरी बैचेनी को देख 
मौसम भी बैचेन होने लगा है 
दर्श को तेरे मन तड़पने लगा है 

आज फिर दिन गुज़रने लगा है ,
दर्श को तेरे मन तड़पने लगा है ..!!

बात मुश्किल से होंटो पे आई है 
तेरे आने से सुबह की धूप आई है 
तेरी परछाई के संग मन चलने लगा है 
दर्श को तेरे मन तड़पने लगा है 

आज फिर दिन गुज़रने लगा है ,
दर्श को तेरे मन तड़पने लगा है  ..!!!





                           © Subodh Rajak 
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Friday, August 28, 2020

Hindi poem - Jivan parishram / जीवन परिश्रम

 

Hindi poem

जीवन परिश्रम 

.................................


जीवन परिश्रम 

कम न हो जाए 

दिन निकल गया 

कहीं शाम न हो जाए 

शुरू करो फिर कोशिश 

ज्यादा आराम न हो जाए 

जीवन परिश्रम 

कम न हो जाए ..!


ये श्रृंगार रस की कविताएं 

हल नहीं करती 

जीवन की बाधाएं 

बस कागज के दो टुकड़ों में 

गम बट न जाए 

जुनून मन का कहीं 

कम न हो जाए ..!!


लक्ष्य पाने का 

उम्मीद कहीं 

कम न हो जाए 

जीवन परिश्रम 

कम न हो जाए  ..!!!






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Monday, August 24, 2020

Thandi Thandi / ठंडी ठंडी

 

Thandi


ठंडी ठंडी 
........................

ठंडी ठंडी चली है ये हवाएं 
याद मुझे उसकी दिलाए 

पीछे पड़ गया ये 
मौसम ये सुहाना 
हो गया है पागल ये दिवाना 
रंग चांदी सुनहली फिजाएं 
याद मझे उसकी दिलाए 

ठंडी ठंडी चली है ये हवाएं 
याद मुझे उसकी दिलाए 


आया है मौसम वही 
जब मिले थे हम 
जालिम ने कर दिया 
मेरी आंखें नम 
इनकी नादानी को 
कौन इन्हें बतलाए 
याद मुझे उसकी दिलाए 

ठंडी ठंडी चली है ये हवाएं 
याद मुझे उसकी दिलाए 


कई रंग उभर आई है 
नीले आसमां पर 
मेरी बेरंग इस जहां में 
सौ रंग ये मिलाए 
याद मुझे उसकी दिलाए 

ठंडी ठंडी चली है ये हवाएं
याद मुझे उसकी दिलाए ..!!





                         © Subodh Rajak   

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Hindi poem - Muskan / मुस्कान

Muskan

 ||  मुस्कान ||
..............................

तेरे होठो पर कुछ 
निकल आई है 

सोचता हूँ 
बिना कहे तुमसे 
चुरा लुं इसे 

जैसे गुलाब की पंखुड़ियां 
बिखर कर यहाँ 
और भी खुबसुरत 
हो गई है 

ये कौन सी चीज है 
जो तेरे होठो पर 
निकल आई है 
सोचता हूँ 
बिना कहे तुमसे 
चुरा लुं इसे 

~...~...~...~...~

ये मुस्कान 
जो तेरे होंठों पर 
निकल आई है 
कहां से आई है?
कहीं से तो 
आई होगी 
इतना स्वादिष्ट व्यंजन 
किसी ने तो 
पकाई होगी 

ये पंखुड़ियां 
जो आ कर यहाँ 
बिखर गई है 
ये सुंदर कली 
कहीं न कहीं 
खिला होगा 
इसको जीवन जल 
कहीं न कहीं से 
मिला होगा 

ये दरिया रस का 
किस मुहाने से 
निकल आई है 
ये मुस्कान 
जो तेरे होंठों पर 
निकल आई है 
कहां से आई है ?..!!



                    
                         © Subodh Rajak 

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Monday, August 17, 2020

Hindi poem - Kuch aihsans / कुछ ऐहसास

Hindi poem

|| कुछ ऐहसास ||
.......................................

कुछ ऐहसास 
शब्दों से स्पष्ट नहीं होता 
जैसे भीगे हुए चेहरे में 
आंसू की पहचान नहीं होता 
सब कुछ छिपा लेना 
इतना आसान नहीं होता ,
छिप जाते हैं 
कुछ बोल लबों के 
हर बार मुस्कुराना 
इतना आसान नहीं होता !!

उम्मीद को हमने 
इस कदर जकड़ा है 
कि डूबती सांसों ने 
तिनका तिनका पकड़ा है 
पर कभी न कभी 
उम्मीद की पकड़ 
छुट जाता है ,
कांच हो या सपने 
मर्यादा की उंचाई से गिर कर 
टूट जाता है ..!!

जैसे ढेर रेत का 
मुट्ठी में नहीं समाता ,
कुछ ऐहसास 
शब्दों से स्पष्ट नहीं होता  ..!!


                                © Subodh Rajak 

 



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Saturday, August 15, 2020

Phulon me khushbu mitti ka / फूलों में खुशबू मिट्टी का

 

Phulon me khushbu mitti ka

|| फूलों में खुशबू मिट्टी का ||
.............................................

सर उठा कर दूं सलामी, आज तिरंगा लहराया है ,
बिखरे फूलों में खुशबू, मिट्टी का मैंने पाया है  ..!!

आज लुटा दूं जान मैं अपनी 
मौका हमने पाया है ,
भारत माँ के चरणों पर 
स्वर्ग हमने पाया है  ..!!

प्रेम वतन का कण कण, मुझमें समाया है ,
बिखरे फूलों में खुशबू , मिट्टी का मैंने पाया है..!! 

उंची हिमालय की तरह 
विश्व में तेरी पहचान हो ,
निकले जो तेरी शान के ख़ातिर
पहले मेरा प्राण हो  ..!!

तेरी हवाओं में लहराना, मन को आज लुभाया है ,
बिखरे फूलों में खुशबू, मिट्टी का मैंने पाया है  ..!!

आज सजी है फूलों से 
माँ भारती का आँगन ,
कहीं लिखा है जय हिंद
कहीं  वंदे मातरम् ..!!

आज खुशी में मन बड़ा हर्षाया है ,
बिखरे फूलों में खुशबू, मिट्टी का मैंने पाया है..!! 


                             © Subodh Rajak 





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the time

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