Friday, June 12, 2020

Hindi poem - Galiyan/गलियां

Hindi poem - Galiyan/ गलियां 
Hindi poem galiyan

गलियां 

एक दिन यूहीं गुज़रा उन गलियों से 
वही पुरानी फूल झांक रही थी डालियों से 
जब पड़ा उसमें सुबह का धूप 
खिल उठा उसका सुंदर रूप 
दिल क्यों उलझ पड़ा उन कलियों से 
एक दिन यूहीं गुजरा उन गलियों  से..!

वो खुशबू, मन लुभाती है 
वो रंग,दिप कई जलाती है 
रोशन है वो अंधेरी गली 
ये रास्ते मंजिलें बताती है 

मंत्र मुग्ध हो गया सुनकर जो संगीत 
बजी है न जाने किन उंगलियों से 
एक दिन यूहीं गुजरा उन गलियों से..!! 

धीरे धीरे बढ़ रही थी कदमों की डोर 
खिंच रही थी एक लकीर 
ये लकीर कोई धागा था या कुछ और 
हम उलझ गए उसमें न मिला कोई छोर 

खिलते देख उन कलियों को 
भंवरों ने स्वागत किया तालियोें से 
एक दिन यूहीं गुजरा उन गलियों से..!!

गिर कर बढाई थी शोभा राहों की 
जिन राहों पर हम गुजरें 
या खुदा सुलाना मुझे उस जमीं पर 
जिस कब्र पर वो बिखरे!

छुपा के आंसू गुजरा जिन महफिलों से 
एक दिन यूं हीं गुजरा उन गलियें से..!!! 





Subodh Rajak 
SUBODH HINDI COMPOSITIONS 

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आपके आने से मेरा मनोबल बढ़ा है! पुनः पधारें! 
धन्यवाद! 

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