Hindi poem - Machhali / मछली (fish)
मछली
कुछ देर देखता रहा शीशे में तुझे
और तेरी जल नगरी को
तेरी और मेरी दुनिया के बीच में
एक पतली सी कांच की दिवार है
न मैं उस पार जा सकता हूँ
और न ही तुम इस पार आ सकती हो
तेरी भी दुनिया में कुछ हरा भरा है
तुम्हारे साथ भी कुछ नीला पीला सुनहरा है
काश तुम्हारी बातें मैं समझ पाता
तुम भी कुछ लिख पाती हिन्दी में
तुम्हारी बातें सुनता बैठकर
दो शब्द ला पाती अगर होंठो में
तुम भी सोचती होगी
ये कौन ताक रहा है तब से वायुमंडल से
ये अजीबोगरीब प्राणी
न गलफड़े हैं उसके न पूँछ है
ऑक्सीजन भी लेता है या नहीं?
लेता हूँ!
ऑक्सीजन के खर्चे से ही चल रहा है
धरती का सफर!
ठीक है फिर! मिलते हैं
बहुत देर हो गई, अब चलना है मुझे
बहुत देर से देख रहा हूँ शीशे में तुझे..!!
Subodh Rajak
SUBODH HINDI COMPOSITIONS
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आपके आने से मेरा मनोबल बढ़ा है! पुनः पधारे धन्यवाद!!
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