Sunday, June 28, 2020

Hindi poem - Diya / दिया

Hindi poem - Diya / दिया 


Hindi poem



दिया 

वो दिया जो बुझी हुई है 
बेकार किसी कोने में पड़ी हुई है 
कुछ जली हुई राख है उसमें 
कुछ वक्त की धुल पड़ी हुई है..! 

कभी किसी मंदिर में जली 
पूजा की थाली में सजी 
कभी रोशन किया था किसी घर को 
आज उसी घर के अंधेरों में 
बेकार किसी कोने में पड़ी हुई है 

वो दिया जो बुझी हुई है 
बेकार किसी कोने में पड़ी हुई है..!! 

लौ की विरहा में बेजान हो गई है शायद 
वो चमक कहीं खो गई है 
मकड़ों की जाल में सजी 
एक पुरानी इमारत बनी हुई है 

वो दिया जो बुझी हुई है 
बेकार किसी कोने में पड़ी हुई है..!!

लौ की स्मरण में जलती होगी 
हिज्र की आग में कभी कभी 
अंधेरों में अक्सर 
दिख जाता है धुआं कभी कभी 

एक टूकड़ा बिखरा है कौने में 
एक टूकड़ा कूड़े में पड़ी है 
वो दिया जो बुझी हुई है 
बेकार किसी कोने में पड़ी हुई है..!! 







Subodh Rajak 
SUBODH HINDI COMPOSITIONS 

हमारी रचनाएं पढ़ने के लिए नीचे दिए लिंक में जा कर मेरे ब्लोग में पढ़ सकते हैं! 

आपके आने से मेरा मनोबल बढ़ा है! पुनः पधारे! धन्यवाद! 


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